हम सदैव हैं ऋणी
हम सदैव हैं ऋणी
अनेकता में एकता, मूलमंत्र है यही,
धरा पे आँच आये ना,पूर्व राष्ट्र धर्म है।
अखण्डता मिटे नही,वन्देमातरम् कहें,
ये कर्म-वीरभूमि है,देवभूमि है यही।।1।।
विजेतृगीत गाये जा,हो जाये या लहू लुहान,
प्राण जाये,जाने दो!न जाये आन-बान शान।
लहराये नील गगन में,तिरंगा है हमारी जान,
समूल नष्ट होवेगा,मिटेगा यूँ नामो निशान ।।2।।
बोस-भगत या आजाद,राष्ट्र को हुए फना ,
गूंजा वन्दे मातरम्,शत्रुदल हुआ आगाह।
मौत बन के वे चले,मेघों जैसा था प्रवाह,
क्रान्ति के मशाल थे वे,कर गये वे शत्रुदाह।।3।।
इस मही से स्वर्ग तक,आज तुम जहाँ भी हो!
धरा से दिग्दिगन्त तक,माँ भारती का मान हो।
हम सदैव हैं ऋणी,तुम हमारी शान हो,
निडर रहे डटे रहे,कि वीरता की मूर्ति हो।।