हम सब पेड़ लगाएंगे
हम सब पेड़ लगाएंगे
हरी चुनरिया ओढ़े जो,
सबके ख्वाबों में बसती थी।
ऐसी सुंदर स्वच्छ सलोनी,
हमारी प्रकृति दिखती थी।
फल दिए खाने को जिसने,
फूल सजाने को दिए।
छांव दी उमस में हमको,
कभी प्यार के बहाने दिए।
बरखा, सर्दी की सर्द हवाएं,
इनका भी एहसास दिया।
झूले झुलाए प्यार से कभी,
कभी गर्मी और प्रकाश दिया।
जाने किसकी नजर लगी,
रूप जो इसका बदल गया।
हरि भरी प्रकृति को मन,
दानव प्रदूषण निगल गया।
अब आने वाली पीढ़ी को,
कैसे यह दृश्य दिखाएंगे।
शपथ लो प्रयोग छोड़कर,
हम सब पेड़ लगाएंगे।
