हकीकत
हकीकत
इए दुनिया का रीत है पुरानी
यहां गैर बन जाते हैं अपने
और अपने
बनजाते हैं बैगाना।
आज जो तुम्हारे
चाहने वाले हैं
वो सब सिगार के धुएं है
तुम्हारे फेफ़ड़े जल ने
तक तुम्हरे साथ देंगे,
और बाद में बेसहरे
करके छोड़ देगे।
जिसके इंतज़ार में
मैंने बिताए अपनी सारी
रात रो कर,
आज वही बना बैठा है
अपनी इमारत मेरी आंसुओं की
बैसाखी के ऊपर चढ़कर।
आज एहसास हो रहा है
मुझे उसके धोखे का
आज मालूम पड़ रहा है
दर्द किसी अपने को खोने का।
