हिंदुस्तान की बेटी की एक दुआ
हिंदुस्तान की बेटी की एक दुआ
बड़ी उम्मीद से आयी थी तेरे घर,
एक प्यारी नन्ही कलि बनकर|
सींचा तो था तूने भी मुझे,
अपने दिल का टुकड़ा बनाकर, प्यार से गले लगाकर||
फिर क्यों मैं ऐसे रौंदी गयी?
दबोची गयी, नोचि गयी, खरोंची गयी||
क्या किया था गुनाह ऐसा मैंने?
की बद से बदतर सज़ा के लिए सोची गयी||
दर्द से कर्राह रही थी मैं,
रोती, गिड़गिड़ाती, भीख मांगती थी|
फिर भी न रेहम बरती ज़ालिमों ने,
क्या चीखें मेरी इतनी धुंदली थी?
तू कहती थी जो फरिश्ता मुझे,
सीने से लगाए रखती थी|
तो क्यों नहीं ऐसा उन्होंने सोचा?
क्या फिर तू झूठ बोला करती थी??
चिड़िया कहती थी तू मुझे,
आँखों में सपना भी तूने भरा|
पर पंखों को ही कुचल दिया बेरहमों न,
छीन लिया मेरा आसमान सारा||
यह हश्र ही अगर लिखा था लकीरों में
तो जनम से पहले मौत की ख्वाहिश है|
बस अगले जनम बेटी न बनूँ किसीकी,
यही एक फ़रियाद, यही एक फरमाइश है||
न पैदा होती मैं बेटी बनकर,
न लिखी गयी होती यह दास्ताँ|
हार गयी आज तेरी निर्भया ओ माँ,
मिट गया तेरे आसिफा, प्रियंका का भी जहां||
अगर बेटी बनने की यहीं सज़ा है,
तो दुआ है ये जीवन किसीको न मिले|
अगर बेख़ौफ़ रहने की यही शर्त है,
तो किसी आँगन बेटी नाम का फूल न खिले||
