हिंदी मेरी पहचान
हिंदी मेरी पहचान


हिंदी मेरी भाषा,
हिंदी मेरी पहचान।
संस्कृत से है उपजी,
देवनागरी में बसते प्राण।
सम्बधों के तार जोड़ती,
होटों की बनती मुस्कान।
देवों की कहलाती भाषा,
ग्रंथों का करती बखान।
बोली में है सबसे मधुर,
कर्णप्रिय है इसके तान।
विस्तृत है व्याकरण इसका,
विरासत पर है अभिमान।
अन्तर्मन को छूने वाली,
पाती है जग में सम्मान।
जो भी समझे, जो भी बोले,
करता वो इसका गुणगान।
हिंदी मेरी भाषा,
हिंदी मेरी पहचान।