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Vikrant Kumar

Others

4.3  

Vikrant Kumar

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चाय

चाय

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उसके सुर्ख रंग का दीवाना हूँ मैं,

उसकी महक से मन में बवाल उठता है।

उसकी गरमाहट से मिलती है ताज़गी मुझको,

आँख खुलते ही उसका ख्याल उठता है।

उसकी बलखाती अदाओं का कायल हूँ,

थाम ना लूं तो मन में सवाल उठता है।

अधर होते है बेताब छूने को,

घूँट घूँट पीने का मन में विचार उठता है।

 इक चाय से है पटरी पे जीवन मेरा,

 ना मिले तो मन में भूचाल उठता है।



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