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Vrajlal Sapovadia

Abstract

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Vrajlal Sapovadia

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हिमालय

हिमालय

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यदि शिला का ये ढेर होता

अपना नहीं वो गैर होता

पत्थर का जो बनता हिमालय

कोई कभी ना जाता शिवालय

पहाड़ उद्यमी की मिल में बनता

ऐमेज़ॉन पे ऑनलाइन बिकता

कंचनजंगा न केवल ऊँचा शिखर

दुश्मनो को ये करता बिखर

गंगा जिस की गोद से बहती

ठण्ड से वो कितना संकट सहता

भारत माता की गोद में पाला

अहर्निश बनता सब का रखवाला

तेज और तीव्र पवन को खाता

बारिस बन के हिन्द में बरसाता

जड़ी बुट्टी का बड़ा खजाना

मुकट हिन्द का तुमसे सजाना

सन्यासी में वैराग जताया

ज्ञान का दीपक जलाया

उर में उसकी बड़ी उपलब्धि

ठंड गरम और समर्थ औषधि

अरबो को वो देता प्राणवायु

लम्बी करता जन की आयु

घने जंगल को बसने देता

सहता कष्ट फिर भी कभी ना रोता

रोज रोज वो हस्ता रहता

प्रेम और जल की नदिया बहाता

भारत वर्ष का खड़ा हिमालय

शंकर तेरा मंदिर शिवालय

दर्शन करने जाते हिमालय

दर्शन करने आते शिवालय

भारत वर्ष का खड़ा हिमालय







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