हे राम
हे राम
विनय - श्री राम से
प्रभु की कृपा से तुलसी दास ने,
रच डाला अनुपम श्री रामचरित मानस ।
हे राम !आन बसो मेरे मानस में,
राम नाम की महिमा का गुणगान करूँ ।
श्री राम लला जनमे अवध नगरी
नगर पुर वासी निहाल हुए ।
हे राम !जनम दीजो अयोध्या में
इस जीवन जब मै मर जाऊँ ।
छूते ही चरण शिला से
वह बन गयी अहिल्या नारी ।
हे राम !मुझे मिल जाये चरण रज
नित चंदन सा लेप लगाऊँ ।
सबको पार लगाने वाले
केवट से अनुनय
विनय करें ।
मेरी जीवन नईया केबनो जो नाविक
मैं भव सागर से तर जाऊँ ।
सबरी के बेर बड़े प्रेम से खाये
भक्त शिरोमणि का पद दिया ।
हे राम !पधारो मेरी कुटिया
मैं नित नित डगर बुहारूँ ।
मानव की भारी भूल यही कि
सुख में प्रभु को बिसराये ।
हे राम !मुझे ऐसा वर दे
मैं राम जपन ना बिसराऊँ ।