मुरलिया कान्हा की
मुरलिया कान्हा की
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श्याम के इन अधरों पे,बिजुली सी सजती है
मुरलिया ये कान्हा की , जादुई लगती है
मुरलिया की धुन सुन के,अंबर रवि चढ़ता
माधव की मुरली में ,न जाने क्या रहता
सुन धुन वहाँ मुरली की ,गईया चरती है
मुरलिया ये कान्हा की , जादुई लगती है
मुरलिया की धुन सुन के,राधिका आती है
माधव संग जीवन वो ,मन में बिताती है
माधव कि ये मुरली पे,मीरा भि मरती है
मुरलिया ये कान्हा की , जादुई लगती है
मुरलिया के धुन पे ही ,यमुना जल बहता
जो भी सुनता मुरली धुन,कान्हा हि मन रहता
जब जब भि बजती मुरली ,आनंद भरती है
मुरलिया ये कान्हा की , जादुई लगती है।
