हे अंबुद! तू नीर बहा दे!
हे अंबुद! तू नीर बहा दे!


प्रावृट की
आ गयी है बेला
मेघवृत्त हुआ है अम्बर
उड़त- फिरत
है श्यामल मेघावरि
हे अंबुद! तू नीर बहा दे !
हुआ प्रचंड दिवाकर अब तक
अग्नि बरसती है नभ से
त्राहि-त्राहि जीवात्मााओं में
जन-जीवन की तृषा मिटा दे
हे अंबुद ! तू नीर बहा देे !
चिंतक दादुर मयूरा पुकारे
तृष्णार्त
हुआ विहगवृंद
चौपाये बिन जल हैं आकुल
अब तो
जग की प्यास बुझा दे
हे अंबुद ! तू नीर बहा देे !
आस जगा कर
भूमि पुत्र की
कोरा तूू निर्घोष न कर
इस बंजर-सी
शुष्क अवनि को
हे तू मृदु बना दे
हे अंबुद ! तू नीर बहा देे !
पयोदेव कर बद्ध है अनुनय
सम्मुख तेरे
याचक हैं हम
कर फैलाकर मांगे भिक्षा
पुण्य सलिल अमृत बरसा दे
हे अंबुद ! तू नीर बहा दे !
सकल सृष्टि
हरीतिमा मांगती
क्या तरुवर
क्या वल्लरि क्या पादप
तेरी एक झलक पा मेघा
स्मित स्निग्ध
हर्षित होगी प्रकृति
पर्ण-पर्ण मुदित
तृण-तृण हिमिका दमकत
गाछ-गाछ झूमेंगे
संग तन्वंगियों के
तू नेह पीयूष बरसा दे
हे अंबुद ! तू नीर बहा दे!