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Rahul Wasulkar

Abstract

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Rahul Wasulkar

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है भी और नहीं भी

है भी और नहीं भी

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सालों बीत गए, 

इन आंखों की झपकी में,

दुख के क्षण,

और आनंद है भी और नहीं भी।


जिन लोगों से प्यार किया,

आए है और गए, 

लेकिन कौन कहाँ रुका,

कुछ पता है और नहीं भी।


जीवन कहाँ आसान, 

संघर्ष वहाँ है भी और नहीं भी .. 

मानस भरा हुआ देह यह, 

समय भी है और नहीं भी।


सब को रास्ता मिला या नहीं, 

खड़े है अपने दम पर कही,

कुछ रातें आंसुओं से भरी,

किसी का दिन आया और नहीं भी।


और कितनी बातें है, 

जो महत्वपूर्ण है भी

और नहीं भी,

और कितनी बातें है

जो बनी और नही भी।


और चिंता और भय,

जो हर दिन त्रस्त करता,

लेकिन मायना यही कहता,

कितना तू मंजिल तक पहुंचा।


कितना सफल हुआ या नहीं भी,

और कुछ ज्ञात या गणना कहाँ,

कितना साझा किया।


आत्मा और दिल का अंत तो होंगा,

वास्तव में यह महत्वपूर्ण है या नहीं भी,

क्या जीवन की राय या तेरी राय, 

यह अंत में एक होंगी या नहीं भी।


सालों बीत गए, 

इन आंखों की झपकी में,

दुख के क्षण,

और आनंद है भी और नहीं भी।


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