हाथों की लकीरें
हाथों की लकीरें
हाथों की लकीरें या कह दो कठपुतली उसकी,
जहाँ चाहें घुमा दें ये है मर्ज़ी उसकी।
कभी डाल डाल कभी पात पात,
कभी इस पार तो कभी उस पार,
इनमे छुपी है नरमायी या कह दो इच्छा उसकी,
जहाँ चाहें घुमा दें ये है मर्ज़ी उसकी।
सागर सी खुशियां देदे तो कभी ज्वाला से घात,
हिमालय सा सम्मान कभी, बादलों का वज्रपात,
भविष्य का रहस्य या कह दो पहेली उसकी,
जहाँ चाहे घुमा दें, ये है मर्ज़ी उसकी।
रंग रूप, धूप छांव है ये तिनके पल के,
कद काया मौसम है, पल झपकते बदले,
ये नया मोड़ है या कह दो
अगला पन्ना किताब का उसकी।
जहाँ चाहें घुमा दें, ये है मर्ज़ी उसकी।
