हास्य रस
हास्य रस
हर काम पर हलंत लगाती हो।
पूर्ण विराम सी हो गई है जिंदगी।
क्यों इतने कोश्चन मार्क बनाती हो ?
संपूर्णता में रहती हो।
अपूर्ण कहती हो।
पूरे घर का खाना।
अकेले हजम करती हो।
नींव मजबूत करने की
बातें करते हो
खुद लेकिन कितना
हिलते हो
भ्रष्टाचार से,
पेट भरते हो।
चूहे को यूं ही
बदनाम करते हो।
आहत हैं हम चार।
बना रहे हमारा अचार।
गिर गया तुम्हारा आचार।
किया इस पर विचार।
