हारा वही जो लड़ा नहीं।
हारा वही जो लड़ा नहीं।
जीवन की अद्वितीय कहानी है।
संघर्ष के मैदान में सिर ऊँचा किया,
दृढ़ता के संग नए सपने सजाएं।
हारा बही जो लड़ा नहीं,
हार की लकीरों को मिटा दिया,
उठा लिया सिर बुलंदी की ओर।
दृढ़ता के आंधी में उसने रुका नहीं,
आगे बढ़कर नये अवलोकन किए |
हर चुनौती में उसका मन बलवान रहा,
निरंतर अपनी क्षमताओं को चुनौती दी।
हार के द्वार पर खड़े होकर,
विजय की ओर अपने कदम बढ़ाएं।
हारा बही जो लड़ा नहीं,
वह विजय के आकाश में तारा बन गया।
अपनी आत्मा को सच्ची ऊंचाइयों में ले जा पाया,
जीवन के रंगीन सफ़र पर आगे बढ़ा।
संघर्ष की आग में जलते रहकर,
हार को भूलकर सफ़लता की दौड़ में रवाना हुआ।
अपने सपनों को सच करने के लिए अग्रसर रहा,
जीवन की पाठशाला में खुद को व्याख्यान दिया।
हारा बही जो लड़ा नहीं,
वह दृढ़ संकल्प और विश्वास का प्रतीक है।
जीवन के मैदान में नए उद्यमों को उगाएं,
खुद को सच्ची जीत का अनुभव कराएं।
उठ जा उठ, लहरा एक दशा,
हारा बही जो लड़ा नहीं।
समय की आंधी थी जब आई,
समर्पण और बलिदान का संघर्ष सही।
आस्था जगाई, हिम्मत जगाई,
अपनी मातृभूमि को समझाई।
हार को नहीं माना, लड़ा अपनी ज़िन्दगी,
कर्म और साहस की बनी सीमा।
सोचा नहीं था आगे बढ़ना,
पर समर्पण ने दिखाई राह।
मुश्किलों की चट्टानों पर थामा कदम,
न दर्द को महसूस किया, न जबाह।
प्रशंसा न मिली, उसे कुछ नहीं,
सिर्फ़ आत्मनिर्भरता और सम्मान।
हारा बही, पर लड़ा जीवन की हर टकरार,
खुद को पाकर बना दिया विजयकार।
हर जीत नहीं आती लड़ाई में,
मगर स्वयं को जीता हर हार में।
क्योंकि विजय नहीं होती सिर्फ़ जीतने से,
वह चमकती है जो खुद को गिरते हुए उठाने से।
हारा बही जो लड़ा नहीं,
जीवन की नई कहानी लिखे।
क्या हार होती है जब आत्मविश्वास हो,
उठो और चलो, बनो निर्भय |
जीवन के मैदान में संघर्ष निभाए,
समय के लहरों से टकराए।
न रुके, न हार माने, बढ़ते जाएं,
खुद को साबित करें, अपने सपनों पर राज करें।
दुखों के घेरे में भी मुस्कान लाएं,
हार को भुलाएं।
जीवन के पथ पर अटल रहें,
असंभव को संभव बनाएं।
