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हार तय है

हार तय है

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आज केवल चलने भर से न होगा,

अगर न दौड़ूँ , तो हार तय है।

यूं तो लहरों के भरोसे न होगी नौका पार,

अगर न चली पतवार, तो मझधार तय है।।


निराशा भर से हासिल कुछ होगा क्या ? 

उम्मीद स्वयं से करने लग, उत्साह का संचार तय है।

खुद का आत्मविश्वास डिगने लगे तो

फ़िर न बढ़ सकोगे, मुसीबतों का अंबार तय है।।


चढ़ते - चढ़ते यूं ही थकने लगे अगर,

चढ़ाई से घबराए, तो बेशक उतार तय है।

समय के साथ न चले मुसाफ़िर तुम 

पिछड़ जाओगे सबसे पीछे, वक्त की मार तय है।।


रात लम्बी हो चली हो सर्द मगर

होगी सुबह, आरुणि की बयार तय है।

बस उस भोर से पहले न ठहर जाना

धीरज रख, पहुँचना मंज़िल के पार तय है।।


हवा न रुकी जब नदी न ठहरी

जो रुका जीवन में, उसका बहिष्कार तय है।

'कमल' निराशा का दामन छोड़ दे तू

जीतेगा जिस दिन, तो पुरस्कार तय है।।


        


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