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Ervivek kumar Maurya

Abstract

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Ervivek kumar Maurya

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हार को जीत मानता हूँ

हार को जीत मानता हूँ

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अपनी हार को जीत मानता हूँ

जिंदगी की राह भी जानता हूँ


वक़्त ने मुझको तोडना चाहा हरदम

पर वक़्त से भी लड़ना जानता हूँ


जिंदगी की राह में बिछे हैं कांटे ही कांटे

दर्द सह सह के नंगे पांव चलना जानता हूँ


मायूस क्या होंगे हम और कौन सतायेगा मुझे

गम है फिर भी मुस्कुराना जानता हूँ


लोग मुझको कमतर हैं समझने लगे

कम होके भी ज्यादा बनना जानता हूँ


जमाना मुझे जान के भी अनजान करता है

अजनबी बनके भी खुद की पहचान बनाना जानता हूँ


हार गया हूँ पर अभी जीतने का जज्बा है मुझमें

हौसलों के पंख लगाकर उड़ना जानता हूँ।


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