हाँ लड़की हूँ मैं
हाँ लड़की हूँ मैं
हाँ लड़की हूँ, हां एक लड़की हूँ मैं,
हर किसी से लड़ती थी मैं !
की लड़का - लड़की एक हैं ये कहती थी मैं,
क्यों झलका आज मेरी आँखों से पानी,
क्या उभर आई, फिर वो पुरानी कहानी !
नहीं कर सकती तुम ये काम ,
क्यूंकि लड़की हो तुम जनाब !!
मूर्ति में पूजते हो उसे ,
सामने दुत्कारते हो इसे !
क्यों हमारे रास्ते में मुश्किलें, बंदिशें होती समाज की!
हमेशा किया अपनी इच्छाओं का बलिदान,
बदले में मिला सिर्फ और सिर्फ अपमान !
सरस्वती का अवतार हूँ मैं, शिक्षा का भंडार हूँ मैं !
बदकिस्मती मुझ पर हँसती, जब मैं खुद शिक्षा को तरसती !
लक्ष्मी का अवतार हूँ मैं, सुख समृद्धि का भंडार हूँ मैं!
बेबसी मुझ पर हँसती, जब मैं दहेज के लालच में मरती !
एक घर का चिराग हैं लड़के, तो दो घरों को रोशन
करती हैं लड़कियां !
तपती धूप की छाँव हैं लड़के, तो अमृत हैं लड़कियां !
यह मत भूलो की लड़कों को भी जन्म देती है लड़कियां !
क्यों एक कैद पंछी की तरह , उड़ने की ख्वाहिश लिए ,
समाज की बेड़ियों की जकड़न निराश कर रही मुझे!
उड़ने दो मुझे आज, जरा देखे तो यह बावला समाज !
जिसको समझा था एक लाचार असहाय चिड़िया !
तय कर सकती है, वो भी ऊँचे आकाश की दूरियाँ !
परिवर्तन हैं दुनिया का दस्तूर ,
करो अपने घमंड को चूर, न करो इन्हें अपने से दूर,
क्यूंकि लड़कियां हैं खुदा का नूर!!