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Ruchi Singla

Inspirational

4.7  

Ruchi Singla

Inspirational

हाँ लड़की हूँ मैं

हाँ लड़की हूँ मैं

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हाँ लड़की हूँ, हां एक लड़की हूँ मैं,

हर किसी से लड़ती थी मैं !

की लड़का - लड़की एक हैं ये कहती थी मैं,

क्यों झलका आज मेरी आँखों से पानी,

क्या उभर आई, फिर वो पुरानी कहानी !

नहीं कर सकती तुम ये काम ,

क्यूंकि लड़की हो तुम जनाब !!

मूर्ति में पूजते हो उसे ,

सामने दुत्कारते हो इसे !


क्यों हमारे रास्ते में मुश्किलें, बंदिशें होती समाज की!

हमेशा किया अपनी इच्छाओं का बलिदान,

बदले में मिला सिर्फ और सिर्फ अपमान !

सरस्वती का अवतार हूँ मैं, शिक्षा का भंडार हूँ मैं !

बदकिस्मती मुझ पर हँसती, जब मैं खुद शिक्षा को तरसती !

लक्ष्मी का अवतार हूँ मैं, सुख समृद्धि का भंडार हूँ मैं!

बेबसी मुझ पर हँसती, जब मैं दहेज के लालच में मरती !

एक घर का चिराग हैं लड़के, तो दो घरों को रोशन

करती हैं लड़कियां !

तपती धूप की छाँव हैं लड़के, तो अमृत हैं लड़कियां !

यह मत भूलो की लड़कों को भी जन्म देती है लड़कियां !


क्यों एक कैद पंछी की तरह , उड़ने की ख्वाहिश लिए ,

समाज की बेड़ियों की जकड़न निराश कर रही मुझे!

उड़ने दो मुझे आज, जरा देखे तो यह बावला समाज !

जिसको समझा था एक लाचार असहाय चिड़िया !

तय कर सकती है, वो भी ऊँचे आकाश की दूरियाँ !

परिवर्तन हैं दुनिया का दस्तूर ,

करो अपने घमंड को चूर, न करो इन्हें अपने से दूर,

क्यूंकि लड़कियां हैं खुदा का नूर!!


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