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Pradeep Rajput "Charaag"

Abstract

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Pradeep Rajput "Charaag"

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हाले दिल

हाले दिल

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हाल दिल का किसी को बताना नहीं,

आज़  का  ये रहा  वो ज़माना नहीं।


आदमी जो यहाँ कल कहाँ क्या पता,

बात से जाये फ़िर  कब ठिकाना नहीं।


बैठते  थे परिंदे  बिना  खौफ  के,

अब रहा  कोइ मौसम सुहाना नहीं।


दिल कि बस्ती कहीं लुट न जाये कभी,

यूँ नज़र ये  किसी से  मिलाना नहीं।


वक़्त दर साथ हो गर सनम जो तिरे,

फ़िर मुहब्बत किसी से  जताना नहीँ ।


क्या कहें कितने बिछड़े मरासिम सबब,

हाथ खुद दोस्ती का बढ़ाना नहीं।


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