गज़ल
गज़ल
जुदा होकर वो मुझसे,
जाता क्यूँ है !
साथ मेरे ही ऐसा,
होता क्यूँ है !
कभी खुश था वो मुझको,
ज़ख्म देकर यारों !
दर्द अब खुद को हुआ,
तो वो रोता क्यूँ है !
एक मुद्दत से तमन्ना थी,
उनको पाने की !
आज पाकर हमें, हमको,
वो खोता क्यूँ है !
जाने कितनी ही रातें,
बिताई जाग कर हमने,
उड़ा के नींद मेरी, चैन से,
वो सोता क्यूँ है !

