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bhandari lokesh

Tragedy

4.5  

bhandari lokesh

Tragedy

गुनाह ?

गुनाह ?

1 min
254


राहों में बैठे हम पलकें बिछाये

मगर लौट कर तुम अब तक ना आये

बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था

जो आँखों से हमने यूँ झरने बहाए

बड़ी खुशनुमा थी हमारी कहानी

थी यारों की महफिल और थोड़ी शैतानी

मगर अब वो लम्हें हुए कल गुजरा

जिन लम्हों में हमने सपने सजाए

बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था

कर बऱबाद मुझको जो ना शरमाए

था ज़िक्र हमारा हर जुबाँ पे कल तक

है सब कुछ अधूरा जो मेरा था कल तक

ये किस्मत थी मेरी या तेरा करम था

जो तन्हा कर मुझको तनिक मुस्कुराये

बस इतना बता दो क्या मेरा गुनाह था

जो आकर भी तुमने गले ना लगाये!



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