गुलाबी होंठ
गुलाबी होंठ
तुम्हारे गुलाबी होंठ
करे शरारत मुझसे बड़ी
रहती है दूर पर जगा अरमां
मुझे करती तंग कितनी
गुलाबी होंठ के जादुई कहर अपरम्पार
पल पल जिज्ञासा में विभोर कर दे
आह कितनी रस में डूबी है
वो नर्म मुलायम जां
जी करता नयनों से चूमता रहूं दिनों रात
पी लूं होठों के जाम और बहक जाऊं
इस सर्द की धुंध रात
रहती मुक करती संवाद रंगीन
लिपस्टिक लगा पिघला जाती
तनबदन जैसे हो सूर्य ताप
भावनाओं का समर्पण संपूर्ण वृतांत
बिना स्पर्श के चुंबन करे
तुम्हारे होठ पवित्र ज़्मजम की धार।

