गुलाब
गुलाब
दे आया हूँ उसे उल्फ़त का गुलाब प्यारे
वो मुझसे जल गये है देखो ज़नाब प्यारे
इजहार करने इससे अच्छा नहीं तरीका
लिख डाली है उसे उल्फ़त की क़िताब प्यारे
भेजा था फ़ूल उसको कल प्यार का मैंनें तो
भेजा नहीं उसनें कोई भी ज़बाब प्यारे
मैंने सोचा कलियाँ महकी है बग़ीचे में ही
महका था रात भर उसका ही शबाब प्यारे
जिसने क़बूल मेरी की उल्फ़त को नहीं है
हर रातों में आये उसके क्यों अब ख़्वाब प्यारे
कल तोड़कर सगाई का रिश्ता वो गया है
आँखों में दे गया है मेरे वो आब प्यारे
वो औरों से करता बातें फ़ोन पे रात दिन ही
वो बोले फ़ोन मुझसे मेरा ख़राब प्यारे
दीदार हो हंसी मुखड़े का कैसे ऐ आज़म
चेहरे पे आजकल उसके ही हिजाब प्यारे।
