गुजरा वक़्त
गुजरा वक़्त
था वक़्त वो गुजर गया,
चाँद भी ढल गया,
हुआ नया सवेरा है,
पर तू अभी भी ठहरा है,
यूँ पतझड़ सा मायूस क्यों,
क्यों गलतियों पे रोता है,
ये जिंदगी भी खेल है
जो जहाँ रुका वो फेल है
तू गिर जरूर पर दौड़ जा
दिल में अपने ज्वाला जला
ये वक़्त है नहीं रुकेगा
कोई और तुझ से आगे बढ़ेगा
है तू कांच सा तो आईना बन
अपनी रूह की आवाज़ सुन
क्यों तुझे है थक जाना
मंजूर कैसे तुझे है मर जाना
आता नहीं है कोई काम
वक्त के है सब ग़ुलाम
अभी समय है थोड़ा शेष
मत धर अंदर रावण का वेश
पक्षी भी परदेस चले गए
अपने भी अब दूर खड़े है
नन्हा बचपन भी जा रहा है
पर दूर से तुझे पुकार रहा है
जा उठ दौड़ पकड़ ले
सपनों को मुट्ठी में कर ले
उड़ान अभी बहुत बाकी है
चल चकोर संग बातें कर ले
हाँ था वक़्त तो तेरा बुरा
पर अच्छे तेरे हालात हैं
हौसले हैं कच्चे तेरे
और दिल में अभी उफ़ान है
आओ मिले हम दौड़ चले
बेबस बेड़ियों को तोड़ दें
पंख फैलाये फिर उड़ चलें
एक नया कारवां रचें।।
