बेड़ियाँ
बेड़ियाँ
वो तुम्हारी होकर क्यों,
अपनी पहचान भूल जाती है।
सीने में छिपा के दर्द जमाने का,
तुम्हारे लिए मुस्कुराती है।।
एक आह पे तुम्हारी,
वो मीलों दौड़ जाती है।
एक औरत ही है ये,
जो सब कुछ भूल जाती है।।
यूँ तो ख्वाहिशें उसकी भी होंगी,
पर तुमसे मिल के दफन हो जाती हैं।
वो गुड़िया रानी पापा की,
देखो कितनी बड़ी नजर आती है।।
पहन कर बेड़ियाँ तुम्हारे नाम की,
तमाम उम्र जीती चली जाती है।
एक औरत ही है ये,
जो सब कुछ भूल जाती है।।
खाने में नखरीली बिटिया,
खाना क्या खूब पकाती है।
जीन्स टॉप में फुदकने वाली,
साड़ी में क्या खूब जँचती है।।
मकान को तुम्हारे घर बनाने में,
खुद का अस्तित्व मिटा देती है।
एक औरत ही है ये,
जो सब कुछ भूल जाती है।।
बीमार होने पर भी रुकती नहीं,
बेशक कामचोर समझी जाती है।
घर उसका है भी या नहीं,
इसी के लिए मिट जाती है।।
सब को सम्मान देने में,
आत्म विश्वास तक खो देती है।
एक औरत ही है ये,
जो सब कुछ भूल जाती है।।
माँ बाप भाई बहन को छोड़,
तुम्हारे रिश्तों में रम जाती है।
क्या उसके दिल को भी कभी,
पीहर की याद सताती है?
तुम्हारे दो मीठे बोल के लिए,
फिर क्यों वो रोज गिड़गिड़ाती है?
एक औरत ही है ये,
जो सब कुछ भूल जाती है।।