गोल गप्पे
गोल गप्पे
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देख रहा हूँ कब से
इस उबले हुए खाने को
मन कर रहा हैं क्यूँ मेरा ?
गोल गप्पे खाने को
वो तीख़ा, तेज़, करारा
मुँह में जब आ के गिरता है
सौंठ का वो चटकारा
दिल मैं जब आँहे भरता है,
आलू , छोले का वो गठजोड़
देखो बड़ा संगीन है
खट्टा मीठा वो पानी
जैसा सपना कोई रंगीन है,
घर में आती वो बात नहीं
खोमचे वाला ही स्टार है
पांच - दस से पेट ना भरे
गिनती करना बेक़ार है,
चाची , गुड्डू और भैय्या
अम्मा का बहुत दुलारा है
जब भी खा लो जी भर के
हम सबको बहुत ही प्यारा है!