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Dipanshu Asri

Abstract

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Dipanshu Asri

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गोल गप्पे

गोल गप्पे

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देख रहा हूँ कब से 

इस उबले हुए खाने को 

मन कर रहा हैं क्यूँ मेरा ?

गोल गप्पे खाने को  


वो तीख़ा, तेज़, करारा 

मुँह में जब आ के गिरता है

सौंठ का वो चटकारा 

दिल मैं जब आँहे भरता है,


आलू , छोले का वो गठजोड़ 

देखो बड़ा संगीन है 

खट्टा मीठा वो पानी 

जैसा सपना कोई रंगीन है, 


घर में आती वो बात नहीं 

खोमचे वाला ही स्टार है 

पांच - दस से पेट ना भरे 

गिनती करना बेक़ार है,


चाची , गुड्डू और भैय्या 

अम्मा का बहुत दुलारा है 

जब भी खा लो जी भर के 

हम सबको बहुत ही प्यारा है!




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