गंगा पुत्र भीष्म
गंगा पुत्र भीष्म
रचना क्रमांक (1)
धन्य हुई भारत की माटी, पाकर ऐसे पूत महान।
कुरुवंशी योद्धा है सुनलो, देवी गंगा का संतान।।
रचना क्रमांक (2)
आओ सुनकर इनकी गाथा, करते महिमा का गुणगान।
गौरवशाली इतिहास सुना, करलें इनका भी सम्मान।।
रचना क्रमांक (4)
बलिदानी हैं त्यागे जीवन, देकर अपना सबकुछ दान।
पूत पितामह इनके जैसे, होंगे जग में मुश्किल जान।।
रचना क्रमांक (4)
बह्मा का बरदान मिला है, वीर महाभारत संग्राम।
शांतनु राजा के हैं नंदन, गंगा पुत्र भीष्म है नाम।।
रचना क्रमांक (5)
जन्म लिए गंगा गोदी में, पाए दीक्षा ब्रह्मा धाम।
युद्ध कला में पारंगत थे, गुरुवर थे नाथ परशु राम।।
रचना क्रमांक (6)
बड़े प्रतापी योद्धा बनकर, देख देवब्रत आये देश।
मुख मण्डल की आभा अनुपम, छाती चौड़ी सुंदर केश।।
रचना क्रमांक (7)
युवराज चले सीना ताने, करते शांतनु देख गुमान।
उल्लास भरे नाचे दौड़े, पाकर बेटा शेर समान।।
रचना क्रमांक (8)
रचने को इतिहास खड़े थे, वंश भरत के देखो लाल।
फूल बिछाकर धरती बैठी, देवता ताके लेकर थाल।।
रचना क्रमांक (9)
खुशियों पर माया का साया, छाया सत्यवती का प्यार।
देख पिता की व्याकुलता को, विचलित भीष्म करे हुंकार।।
रचना क्रमांक (10)
उत्कंठा की विपदा जाना, भागा भीष्मा गंगा धार।
पूछ निषाद सुता क्या चाहे, रख दूँ पग पर ये संसार।।
रचना क्रमांक (11)
आजा माता बनकर मेरी, छोड़ हठी हो जा तैयार।
जो चाहे करके दिखला दूँ, मांगो चाहे नग भंडार।।
(रचना क्रमांक (12)
झुक जायेगी दुनिया सारी, देव करेंगे नित्य पुकार ।
अब तो मेरा कहना मानो, मात चलो तुम अपने द्वार।।
रचना क्रमांक (13)
मौका देख निषाद तृषा ने, मांग लिया जीवन का सार।
बेटा हँसकर सब कुछ छोड़ा, पाया बहती आँसू धार।।
रचना क्रमांक (14)
अक्षत प्रण सुन धरती काँपे, देव करे सब हाहाकार।
भीष्म प्रतिज्ञा सब पर भारी, विस्मृत दुनिया देख विचार।।
रचना क्रमांक (15)
ये कैसा इतिहास बना है, देख महाभारत आधार।
दाँव लगाकर बाजी हारी, जीत पिता का अनुपम प्यार।।
रचना क्रमांक (16)
बेटा संस्कारी पा शांतनु, भीष्म धरे हैं नाम अपार।
इच्छा मृत्यु मनोरथ पाया, आज शपथ देखो लाचार।।
रचना क्रमांक (17)
प्रण ने कुरु को चिंता डाला, होगा अब कैसे संतान।
देख विचित्र खड़ा है अक्षम, आन पड़ा राजा सम्मान।
रचना क्रमांक (18)
कांशी पुत्री व्याह रचाये, देकर कुरु को है अपमान।
हुंकार भरे क्रोधी भीष्मा , मारे योद्धा ले श्मशान।।
रचना क्रमांक (19)
कांशी राजा दौड़े भागे, होगा कैसे कन्यादान।
भीष्म हरण कर रथ पर डाले, अम्बा का छीने मुस्कान।
रचना क्रमांक (20)
हार नहीं रण ठाना प्रेमी, साल्व खड़े जब सीना तान।
भीष्म उठा कर धरती पटका, भागा पाकर जीवन दान।।
रचना क्रमांक(21)
प्रेम विरह की व्याकुलता से, अम्बा करती देखो रार।
भाव अहम का भारी पड़ता, प्रेम चिता पर सजता हार।।
रचना क्रमांक(22)
त्याग मिला अपमान मिला है, करती अम्बा है चीत्कार।
चिंतित ब्रह्माचारी भीष्मा, देखो व्याह करे इंकार।।
रचना क्रमांक(23)
अबला अम्बा सबला बनती, लेती चंडी का अवतार।
बदला लेने को है आतुर, दौड़े देखो सबके द्वार।।
रचना क्रमांक(24)
योद्धा कौन लड़े जो भीष्मा, देखो निकली अब तो नार।
शस्त्र नही जो टिक पायेगा, भीष्म खड़े है ले तलवार।।
रचना क्रमांक-(25)
नारी पीड़ा भार्गव जाना, बोले देता तुमको त्राण।
जिसने तेरा मान हरा है, हरकर लूंगा उसका प्राण।
रचना क्रमांक-(26)
युद्ध हुआ जब दो वीरों में, लड़ते दोनो शेर समान।
काँपे धरती देव डरें है, काल बने हैं तीर कमान।।
रचना क्रमांक-(27)
मान वचन पर मिटते कैसे, देखा गुरुवर सम संग्राम।
भीष्म कहाँ थे रुकने वाले, युद्ध चला है आठो याम
रचना क्रमांक-(28)
याद रखेगी दुनिया सारी, योद्धा भीष्मा का ललकार।
जिसने गुरु को धूल चटाई, उसको रण में दे दी हार।।
क्रमांक-29
सत्ता की रखवाली करता, अनुचर बनकर वीर महान।
तीनो लोकों में बलशाली, बंधन में है तीर कमान।।
क्रमांक-30
ज्ञानी पंडित द्वार खड़े है, पर अंधों से सुनते ज्ञान।।
भावी पीढ़ी मौत सड़क पर, त्याग दिए बनकर अंजान।।
क्रमांक-31
चीखें गूंज उठी धरती पर, क्रंदन करता है इतिहास।
सुनकर गाथा वंश भरत का, देश करे है अब परिहास।
क्रमांक-32
बंजर कर दी धरती सारी, भाव बने है मरु सम थार।
कहती माटी रक्त कहानी, सुन बहता आंखों से धार।।
