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Nand Kumar

Abstract

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Nand Kumar

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गंगा महिमा

गंगा महिमा

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सगर सुतो के पाप का, 

करने को उद्धार।

विष्णु लोक से जान्हवी, 

 आई बनकर धार।।


जटाजूट शिव के फंसी,

हुई गती तव मंद।

हरिद्वार से फिर वही, 

होकर के स्वच्छंद।।


देवनदी तुम धन्य हो, 

धन्य आपका नीर।

पाप ताप भव रोग मिटि,

 निर्मल होय शरीर।।


भुक्ति मुक्ति दाता तुमहि, 

 तुम अवलम्ब अपार।

तव तट अगणित तीर्थ जो,

करें मनुज भव पार।।


अभिलाषा मेरी यही,

वसौ तिहारे घाट।

दरश परश मज्जन करौ,

तजौ सकल भव ठाट।।


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