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Dr.Purnima Rai

Abstract Classics Inspirational

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Dr.Purnima Rai

Abstract Classics Inspirational

गंगा जल (गीत)

गंगा जल (गीत)

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गंगा के जल ने ही मानो,

मीठे बोल सुनाये हों।

प्रेम हृदय में तभी उपजता,

जब मन-रार मिटाये हों।।


शीतल जल की बहती धारा,

लगती सबको मन भावन,

पाप-पुण्य से मुक्त कराती,

 विस्तृत करती मन आँगन,

शबरी जैसी सेवा मिलती,

जब हिय राम समाये हों।।


प्रेम हृदय में तभी उपजता,

जब मन-रार मिटाये हों।।

वीरों की रग-रग में गंगा,

जोश वीरता भरती है,

राष्ट्र-प्रेम की अलख जगाकर,

मंजिल को सर करती है


भाग्य तभी जगमग करता जब,

कर्म महान बनाये हों।।

प्रेम हृदय में तभी उपजता,

जब मन-रार मिटाये हों।।


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