गंगा जल (गीत)
गंगा जल (गीत)
गंगा के जल ने ही मानो,
मीठे बोल सुनाये हों।
प्रेम हृदय में तभी उपजता,
जब मन-रार मिटाये हों।।
शीतल जल की बहती धारा,
लगती सबको मन भावन,
पाप-पुण्य से मुक्त कराती,
विस्तृत करती मन आँगन,
शबरी जैसी सेवा मिलती,
जब हिय राम समाये हों।।
प्रेम हृदय में तभी उपजता,
जब मन-रार मिटाये हों।।
वीरों की रग-रग में गंगा,
जोश वीरता भरती है,
राष्ट्र-प्रेम की अलख जगाकर,
मंजिल को सर करती है
भाग्य तभी जगमग करता जब,
कर्म महान बनाये हों।।
प्रेम हृदय में तभी उपजता,
जब मन-रार मिटाये हों।।
