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Pritam Kashyap

Abstract

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Pritam Kashyap

Abstract

गम होता नहीं कुछ खोने का

गम होता नहीं कुछ खोने का

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गम होता नहीं कुछ खोने का,

गम होता है तो मिल के कुछ खो जाने का,

जीवन की शाह यूं करवटें बदलती हैं,

फिर भी जवानी यूं ही चलती रहती है,

जिधर देखूं वहां झूठ ही  झूठ है,

सच का तो नामोनिशान नहीं

दिल कहता है रुक जा ठहर जा

और फिर सोच की जीवन क्या है?

जीवन तो है केवल गम को पाने के लिए ही क्या ?

राह कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो,

कदम कितने भी डगमगाने लगे,

और मां की याद आने लगे,

तो सोच तू क्यों सोच रहा था इस बारे में,

क्या पाया है तूने और क्या खोया है,

कि ये झूठ की गलियां छोड़ कर सच को

क्यों नहीं अपनाता तू जीवन तो है छोटी तेरी,

इस छोटी सी जीवन को रंगीन क्यों नहीं बनाता तू ।।



-----------------------------------------------प्रीतम कश्यप------------------------------------------------

 


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