बच्चे की कहानी, समाज की जुबानी
बच्चे की कहानी, समाज की जुबानी
दिन-रात मैं मेहनत करता हूं
फिर भी मैं क्यों ना सकता हूं,
दोस्त हमेशा मुझे मारते हैं
और अध्यापक मजे उठाते हैं
अध्यापक को मैं कहता हूं
डांट कर भगा देते हैं
और कहते हैं , रुलाते हैं
बड़े हो गए हो तुम
डरते क्यों हो ?
क्यों ना तुम खुद उनको धमकाते हो
स्वयं क्यों नहीं बात समझाते हो
क्यों मूर्ख अध्यापक होते हैं
बच्चों की पीड़ा क्यों न समझ पाते हैं
और मदद क्यों नहीं कर पाते हैं
अंत में बच्चों को गुंडा बनने की प्रेरणा देते हैं
फिर बात-बतलाते हैं
तो उसे निकाल देते हैं
समझ क्यों ना पाते हैं
और औरों को क्यों ना समझा पाते हैं
बच्चे की बात ना सुनते हैं
तब बच्चे प्रधानाचार्य से कहते हैं
प्रधानाचार्य तो स्वयं ही निकम्मे होते हैं
मुफ्त की रोटी खाते हैं
दूध मलाई चाटते हैं
ऐसे बड़े गोले होते हैं
कि देश की भी हो जाते हैं
वह बात यही सब कहते हैं
जब बात खत्म हो जाती है
तो प्रधानाचार्य बिछड़ जाते हैं
तब अध्यापक उस बच्चे का मजाक बनाता है
और किस्से सुनाता है
चाय-बिस्किट खाते है
खुद भी गाली देता है
और ईश्वर अल्लाह जपते हैं
फिर भी पढ़ना आता है
बेशर्मों की तरह आते हैं
धौंस भी जमाते हैं
स्कूल में गर्व से चलते हैं
और यही ड्रामा दोहराते हैं
क्यों नहीं सोचते वह बच्चे की क्या गलती थी
जो वह कमजोर असहाय बच्चा था
वही गुंडा बन जाता है
बच्चों का सहायक बनता है
फिर क्यों अध्यापक खुद के ही रोते रहते हैं
सब लोग हैरान क्यों होते हैं
जब उस बच्चे को देखते हैं
उस अध्यापक और प्रधानाचार्य से जवाब क्यों नहीं मांगते हैं
फिर बच्चे को तनाव में लाते हैं
भारत देश की यही कहानी है
सब लोगों की यही निशानी है
उसे और कमजोर बनाते हैं
इस बात को जब मैं बतलाते हैं
और मजाक बनाते हैं
गाना भी सुनाते हैं
इस बच्चे की क्या गलती थी
यारों जीवन की यही कहानी है
जब मैं और कुछ ना लिखना चाहता हूं
ना बोलना चाहता हूं
दुनिया की यही रीत रिवाज है
वही कमजोर व्यक्ति गुंडा बन कर दूसरों को जब मारता है
तब मेरी कविता समझ में आती है
परंतु बहुत देर हो जाती है
जो वह मासूम सा बच्चा था
या तो पागल हो जाएगा
नहीं तो खूनी गुंडा बन जाता है II