गली से उठकर नारा
गली से उठकर नारा
गली से उठकर नारा
संसद तक पहुंचा है
कच्ची- पक्की रोटी खाकर
जनता सत्ता लेने पहुंची है।
गोल-गोल रोटी में
होल कौन करता है
आज उनकी समझ नहीं आती
जब जनता होल करती है।
वोट मांगते वक्त
गज भर की जबान निकल आती है
जीत का माला पहनने के बाद
गदहे पर से सिंग गायब हो जाती है।
न रोटी मांगो
न काम मांगो
जरूरत परे तो ये निवाला भी छीन लो
गहरी निद्रा में सोते का नींद भी छीन लो।
कहते हैं नमक रोटी खायेंगे
गरीबी को मिटायेंगे
इतने बड़े पेट में इसे क्या पचा पायेंगे
गरीबी को क्या गरीब को ही खा जायेंगे ।
बेहाल-बदहाल जनता
चारों ओर हा-हाकार करती जनता
न उनके कानों में जूं रेंगता है
न जनता की पुकार सुनाई देती है ।
रोज मरे, किसान आत्महत्या करे
यही किस्मत लेकर आए हैं
सीना ठोंक कर नेता कहते हैं
हम उनके लाशों पर ही राज करेंगे।
रे पतित, नीच, दुष्ट पाखंडी
ऐसा बेहायापन कब तक करोगे
नारी की हाय, बच्चों की बद्-दुआ मिलेगी
तब अपना मुंह किधर छुपाओगे।
भोली-भाली जनता, कब तक भोली रहेगी
हर-एक कर्म की सजा, यहीं सुनाएगी
न दोजख मिलेगा, न जहन्नुम मिलेगी
फिर जीने से अच्छा, तेरी मौत ही होगी।