ग़ज़ल
ग़ज़ल
जब भी क़लम उठाता हूं
यादों में खो जाता हूं
लिखना था इतिहास मुझे
प्रेम ग्रंथ लिख जाता हूं
भूगोल में रहा पी-एच.डी.
जज्बातों में बह जाता हूं
नज़रों की कशिश भरी
लफ़्ज़ों को लिख जाता हूं
लहरें 'साहिल' की मीत हैं
घुन लहरों की गाता हूं।

