गजल(नसीहत)
गजल(नसीहत)
यूँ ही झगड़ते रहोगे आपस में तो बचाने कोई नहीं आएगा।
रूठे रहोगे चाहे कितनी देर मनाने कौन आऐगा।
रूठा चेहरा कर रहा है बयां आईना,
दिल में क्या गुजर रही है बताने कौन आऐगा।
दोस्ती है आपस में कब से
खुदा जानता है, टूटी दोस्ती को फिर जुटाने कौन आऐगा।
देते थे नसीहत बुजूर्ग न झगड़ने की, अब आप को
समझाने कौन आऐगा।
रहो आपस में भाईचारे से
हाथ से हाथ मिलाने कौन आऐगा।
नहीं निभा सकते तो खुद से करो दोस्ती सुदर्शन
वरना सच्ची दोस्ती नि़भाने कौन आऐगा।