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Sudershan kumar sharma

Romance

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Sudershan kumar sharma

Romance

गजल(आदत)

गजल(आदत)

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आग दिल की वो बुझा न सके,

आग भड़काने की आदत उनकी बन गई। 


बहाने बनाने का उनको शौक था, शायद,

वायदे करके मुकर जाना उनकी आदत बन गई। 


न बन सके मरहम किसी को जख्म देकर,

जख्म पर नमक छिड़कना उनकी आदत बन गई। 


मुक्त कर देते बन्धन से तो अच्छा होता,

कैद पिंजरे में रखने की उनकी आदत बन गई। 


मुस्कराते रहे, परेशान देख कर भी,

अक्श आँखों में देखकर भी, सताना उनकी आदत बन

गई 


रहा इन्तजार ता उम्र जिनका सुधर जाने का, 

नये बहाने बनाना उनकी आदत बन गई 


कुछ करके दिखाना आया नहीं उनको, सिर्फ

हवाई किले दिखाना उनकी आदत बन गई। 


 दे ना सके खुशबू महकते फूल भी बहारों के मौसम में,

बुदबू गिर कर फैलाना जब उनकी आदत बन गई। 


मत समझो खिलौना किसी के दिल को सुदर्शन, 

खेल कर तोड़ देना अक्सर, बेदर्दों की आदत बन गई। 



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