घूंघट
घूंघट
समाज को चलाने वाले रथ के
दो पहिए हैं नर और नारी
पर नारी को घूंघट पहनाकर कब दी उसे आजादी
सम्मान व्यवहार और मन से है होता
दकियानूसी रिवाजों में हुनर भी दम है तोड़ देता
हर पद पर आज है विराजमान नारी
बखूबी निभाना जानती है अपनी जिम्मेदारी
घूंघट की आड़ में मत छीनो उसकी आज़ादी
देश तरक्की कर नहीं सकता जब तक
घूंघट रहेगी देश की आधी आज़ादी।