परिंदा लौटने लगा है...
परिंदा लौटने लगा है...
देने लगा है दस्तक शाम अब दरवाजे पर,
देखो परिंदा घर को लौटने लगा है।
जला लिया है दीप आंगन में किसी ने,
लगता है मानों उजाला खुद को....
अब रात के हाथों सौंपने लगा है।
देखो परिंदा घर को लौटने लगा है।।
पूरे दिन की थकान दिखने लगी है,
आँखों में निंदिया अब टिकने लगी है।
बस अब सुकून की तलाश में,
मानों वो खुद को सौंपने लगा है।
देखो क्या आलम है,
किसी को सुलाने के लिए
रात, खुद पूरी रात जगा है।।
देने लगा है दस्तक शाम अब दरवाजे पर।