STORYMIRROR

Abhishu sharma

Inspirational

4  

Abhishu sharma

Inspirational

घरवापसी

घरवापसी

2 mins
403

बरसों पहले हुआ था इस कोरे कागज़ की

लिप्सा की अनंत तृष्णा का शाही-आगाज़

सब छोड़छाड़ चला गया था मैं नाराज़,

अब जब आज अंजाम के करीब खड़ा हूँ


ना जाने, जाने या मैं अनजाने

लौट आया हूँ वहीँ, लेकर अपने साथ

अपना अंदाज़ -ए-नाराज़, आते ही

अपनी समझ-सोच के अंदाज़े पर


 सुना दिया अपना फरमान कि

कुछ पल ठहर कर फिर वापस लौट जाने को आया हूँ कि

सिर्फ मैं आया हूँ अपना साया तक साथ नहीं लाया हूँ की

तुम लोगों पर एक और एहसान करने आ गया हूँ


मैं तुम्हारा परवरदिगार 

 मेरे अंदाज़े पर नज़र-भर कर

 फिर एक बार सब नज़रअंदाज़ कर

 माँ -पिताजी एक -दुसरे के आंसू हथेली से पोंछ

 करने में जुट गए अपने सपूत की खातिरदारी


थाली लगी, खाया-पीया

स्वाद की गलियों में इतने सालों बाद चक्कर लगा,

भूले -बिसरे जाने -पहचाने

 सभी से फिर एक बारी परिचय कर

परम आनंद की पराकाष्ठा से 


उमंग भरी छलांगों से एक बार फिर

 राम -राम कर आया हूँ, अब 

उल्लास की अंगड़ाई भर चारपाई पर पैर पसार,

शांत चित्त के खर्राटें मार,


गर्दिश में तारों सितारों की रौशनी में 

चेनों -सुकून की बंसी बजाते सो गया हूँ, की

जाना तो कल ही था पर

बीती काली -रात कब सवेरे में बदल गई


दस बरस की लोहे की नाराज़गी,

चंद घंटों में ही मुस्कुराहट हो गई उठा-सवेरे

खुशी बिखेरे, सालों से बिखरे को समेटे,

इतने सालों की जंग लगी बेड़ियों के

 टूटने की खनक सुन आज सालों से सोया था,आज उठा हूँ

 

उठा हूँ -बिन कोई बात मन ये आज मन-भर कर हंसा है,

टूटी पड़ी बेड़ियों को छिटक कर आज फिर एक बार खुला हूँ मैं

खुला -दौड़ा -भागा,चहलता

 चलता कहीं भी ना पहुँचने की आरज़ू में

बिन कोई दिशा -निर्देश,

निर्दोष जंगल में मोर नाचा ,किसने देखा


मैंने देखा,और सिर्फ देखा ही नहीं झूमा भी,

इठलाया भी इतराया भी साथ उसके

संग नाचे ये गिलहरी -हिरन -घोड़े -हाथी भी और 

 नाचा ये अभी -अभी उमड़ा सावन झूम झूम के संग मन मेरा भी 

संग लाये प्लास्टिक के थैले में


तन के हर अंग की पीड़ा दर्द की अंग्रेजी दवा को फेंका

 जैसे बरसों पहले अंग्रेजों को जड़ से उखाड़

खदेड़ा था अपने घर-आँगन से हमने

रुखसत किया था गुलामी को तन-मन से।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational