ग़ज़ल।
ग़ज़ल।
दुआ है तुझसे कि जाम उल्फत की है जरूरत मुझे।
मिल जाए अगर सही जीने का सिल-सिला मुझे।।
मैं मानता हूं कि मेरी हैसियत एक मुजरिम सी है।
हर कुछ मंजूर है तेरी तू जो सज़ा दे मुझे।।
यह दिल बड़ा परेशान है दर्द की इंतहा से।
कहीं टूट ना जाए वह हौसला दीजिए मुझे।।
चाहता हूं कि तेरा ज़लवा दिखे ज़र्रे- ज़र्रे में मुझे।
अता कीजिए आंख ऐसी भी मुझे।।
मिली जो जफ़ा नफ़रतों से नफ़रत मुझे।
दीजिए दुआ वफ़ा से वफ़ा की मुझे।।
उजड़ते चमन को देख दम जो घुटने लगा।
बचा दीजिए अपने नज़रे करम से मुझे।।
यही आरजू है कि बस तसब्बुर हो तेरा।
आस है सिर्फ आपके आने के आसरे का मुझे।।
