ग़ज़ल - मेरी आह सुन मैं हूँ बेज़ुबाँ
ग़ज़ल - मेरी आह सुन मैं हूँ बेज़ुबाँ
मेरी आह सुन मैं हूँ बेज़ुबाँ, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
तेरी ख़ैरियत मैं हूँ चाहता, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
न तू दूर है न करीब है, मेरा अब यही ये नसीब है।
तेरे ख्वाब भी न मुझे दिखा, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
तू हबीब है तू अज़ीज़ है, वो करीम है वो हफ़ीज़ है।
तू रहे ख़ुशी से करूँ दुआ, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
तुझे चाहता था मैं उम्र भर, तुझे माँगता था मैं उम्र भर।
तेरी आरजू का चले पता, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
मेरी जिंदगी में हज़ार ग़म, मेरी जिंदगी में ख़ुशी भी कम।
हो गुमान बस तेरे साथ का, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
जिस मोड़ पे था भुला दिया, मेरे इश्क़ का ये सिला दिया।
हो शुरू वहीं से ये सिलसिला, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
है सवाल इक जो कचोटता, वो जवाब जिस को हूँ खोजता।
दे ये फाँस दिल से अभी हटा, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
की थी माफ़ आपकी हर खता, दी सजा मुझे क्यूँ नहीं पता।
करो हर गिले का यूँ फैसला, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
जो जुबाँ ने तुम से नहीं कहा, वो जो अश्क बन के निकल बहा।
वही बात दूँ मैं तुझे सुना, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
जो बचा सकें है ये राब्ता, तो बना सकें है वो रास्ता।
फिर मिट सके है ये फासला, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।
तेरे हुस्न का जो जमाल है, ये खुदा के 'अवि' का कमाल है।
मेरी जिंदगी भी यूँ झिलमिला, नहीं और कुछ मैं हूँ माँगता।