बारिश
बारिश
फिर बारिश हो बूँदों वाली,
टिप-टिप कर बरखा आ जाये।
हरियाली फसलों की कोमल,
काया को कंचन कर जाये।।
भीगे इस धरती का तन-मन,
उर धानी आँचल लहराये।।
खेतों में अंजुलि भर पानी,
पाकर वसुधा फिर हरियाये।।
बिखरी जल के मोहक मोती,
बन प्रियतम की प्यास बुझाये।।
उड़ी बसन्ती चूनर भीगी,
उर में फिर यौवन भर आये।।
तुम हो, हम हों, संग दोनों हों,
एक-दूजे के हम हो जायें।।