मुक्तक : तेरे बिन
मुक्तक : तेरे बिन
तेरे बिन एक पल भी अब जीना मुश्किल लगता है
दिल की कश्ती का मुझको तू ही साहिल लगता है
जिधर देखूं उधर तुम हो सांसों में निगाहों में तुम हो
गर तू नहीं तो बहारों का मौसम भी बोझिल लगता है
मेरी जिन्दगी में जब से तुम मेहमान बनकर आये हो
ख्वाबों में खयालों में हसीन अरमान बन कर छाये हो
बेरंग सी इस जिंदगी को प्यार के रंग से रंग दिया तुमने
ऐसा लगता है कि जानम अब मेरे दिल में ही समाए हो
विश्वास की इस डोर को कभी टूटने ना देना तुम
हाथ पकड़ के मेरे रहनुमा साथ ना छोड़ देना तुम
कैद करके रख लो हमको अपनी आंखों में सनम
मेरे हमदम मेरे साथी मेरे खुदा मेरी जान हो तुम।