शीर्षक: काली घटा
शीर्षक: काली घटा
घटा साँवरी, काली, मतवाली सी
बरसो री बदरिया झमझम बाँवरी
जरा थम के कभी, जरा जोर से
मिल तो लूँ मैं अपने पिया से
जो दूर है बहुत ही मुझसे
ये गरजती, चमकती सी चंचला
चमकाती प्रकाश डरावना सा
मैं अकेली विरहन तड़फती सी
विरह में बेचैन डरती सी गर्जन से
पिया के बिन तो बहार भी विरहन
छुरियां सी चलती हैं बरखा की बूंदें
भीगे बदन में अगन सी उठती
अगन लगी सावन की घटा से
आँचल ढलकता बारिश के पानी से
आंगन की मिट्टी महकती हैं पानी से
भीग लेने को मन चाहता है पानी में
तन भिगोने को मन चाहता पानी में