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Rishab k..

Abstract Classics Inspirational

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Rishab k..

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गौरैया।।

गौरैया।।

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ओ री ! गौरैया मेरी

भोर की पहली उजास

मेरे मरुथल कानों में

फुहार ओस की

मेरे नयनों की उत्सव

मेरे दिन का मंगलाचरण

जीवन का स्वस्तिवाचन


मेरे छज्जे टंँगी 

बांँस की डोलचियों में पड़े

मेरे अनंत पापों के

 प्रायश्चित दानों को

सहज स्वीकारती


मेरी पापमोचिनी

मेरे अपराध बोध की साक्षी

मेरे क्षरित पुण्य का

 अंतिम कण


तेरी उदारता क्षमाशीलता

करुणा और स्नेहिलता के

 अपार नभमंडल के नीचे

अत्यंत क्षुद्र अकिंचन

अदना सा मैं


तेरी निर्मल निश्छल

 निगाहों की

पावन नदी के प्रवाह में

पाहन खंड सा निरंतर 

 प्रक्षालित पवित्र होता मैं


प्रत्येक 

दिवसावसान की वेदी पर

अपने अपराधों की

 हवि देता

रोम रोम श्रद्धावनत


उन समस्त अपराधों

अनाचारों दुर्व्यवहारों की

क्षमा मांँगता 

जो जाने अनजाने में

किए मैंने

हुए मुझसे


तेरे जीवन को

पीड़ा के तेज़ाब से

 भर देनेवाला 

सिर्फ इतना चाहता हूंँ 


प्रत्येक भोर मेरे आंँगन

मेरी चौखट मेरे छज्जे

मेरे दरवज्जे 

सिर्फ एक बार 

सिर्फ एक बार

ज़रूर आना 

आती रहना


मेरे भीतर के

 मरते मनुष्य पर

अमृत की सिर्फ एक बूंँद

चुआती जाना


भले मेरे दुष्कर्म तुझे रोकें

पर रुकना नहीं

मेरी सबसे प्यारी 

ओ री ! मेरी गौरैया।।


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