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Sudhir Srivastava

Tragedy

4  

Sudhir Srivastava

Tragedy

गौरैया

गौरैया

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अब हमारे घर की मुंडेर पर

गौरैया नहीं आती,

ये टीस हमें सालती है।

परंतु इसमें भला

नन्ही सी फुदकने वाली

गौरैया का क्या दोष?

दोषी तो हम सब हैं

क्योंकि 

अब हमारे घरों में

झरोखे ही कहाँ है?

अब तो रोशनदान बन गये है,

बड़ी बड़ी खिड़कियां हो गये हैं,

उन पर भी जाली लगी

दरवाजे हर पल बंद रहते।

हम आधुनिक जो हो गए हैं।

पशु पक्षियों से दूर हो रहे हैं,

नई पीढ़ी तो सिर्फ

किताबों से जानती है,

सामने दिख भी जाय

तो भी नहीं पहचानती है।

पक्षियों का कलरव भी हमें 

अब नहीं सुहाता है,

घर के किसी कोने में भी

उनका आना नहीं भाता है।

नजर पड़ी जो उनके आशियाने पर

सफाई के नाम पर

अधूरे घोंसले भी 

हम पूरे होने नहीं देते,

उनके अण्डों, बच्चों तक पर

हम रहम कहाँ करते?

अब तो कौए भी 

बस कभी कभार आते हैं,

मेहमान की सूचना देने वाले

अब हमें मुँह चिढ़ाते हैं।

अपनों के श्राद्ध भोज के लिए

कौए की जगह 

कुत्ते बिल्ली ही खाते हैं।

अपवाद पर मत जाइए

पशु पक्षी भी हमसे

दिनों दिन दूर हुए जाते हैं,

शायद हमें अब 

वो सब मिल

आइना दिखाते हैं,

और हम बेशर्म बने

उनकी कीमत तक 

नहीं जानना चाहते।

तभी तो प्रकृति का उपहास करते

हरियाली से विमुख हो 

कंक्रीट के जंगल बसाते,

खुशहाल जीवन के मार्ग में

खुद ही अवरोध लगाते।

मानव सभ्यता का अंतिम संस्कार

अब हम रोज करते,

प्रकृति और पशु पक्षियों के लिए

अब हमीं यमराज होते।



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