गांव को गांव ही रहने दो
गांव को गांव ही रहने दो
शहर ना बनाओ हमारे गांव को गांव ही रहने दो,
हमें हमारे अपनों की छांव में ही रहने दो।
गांव में ही तो देखने को मिलता
हमारे संस्कार हमारी मर्यादा है,
भले ही यहां की औरत अनपढ़ हो,
रिश्तो को जोड़े रखने का हुनर
उनमें पढ़े लिखों से ज्यादा है,
घर को घर ही रखो मकान ना बनने दो,
हमें हमारे अपनों की छांव में रहने दो,
हम अपने विश्वास से पत्थर को भी भगवान बनाते हैं,
अपनी आने वाली नस्लों को,
मेहनत पर भरोसा करने वाला इंसान बनाते हैं,
इसी विश्वास पर कायम हमारा ईमान रहने दो,
हमें हमारे अपनों की छांव में रहने दो,
एक प्रार्थना उनसे ,
जिन्हें शहरों की चकाचौंध भाती है,
गांव की मर्यादा से ज्यादा प्यारी,
जिन्हें अपनी आजादी है,
गांव से जुड़ी अपनी पहचान रहने दो,
शहर ना बनाओ गांव को गांव ही रहने दो।
