एतबार
एतबार
क्या जुल्म हुआ जो प्यार कर लिया
तबाह हुए पर एतबार कर लिया
कुछ दिखता ही नहीं तेरे सिवा
क्यों किया ये क्यों किया
ओ खुदा मुझे थोडा आराम दे दे
ये जलते दिन हटा ठंडी शाम दे दे
कब तक सहन करूं इल्जामों को
मोहब्बत में मिले नामों को
अब हदों की भी इंतहा हो रही है
मगर फिर भी मोहब्बत बेइंतहा हो रही है
मेरे सब सब्र छूट चुके हैं
कांच कुछ आँखों में टूट चुके हैं
आईने की हकीकत हैरान कर रही है
उसकी झूठी दिखाई उम्मीदें परेशान कर रही है
मैं हार गया दिल के मोल भाव में
हाल ऐसा के धूप चुभती छावं में
मन में जलती आग बची है
बस यादों की राख बची है।