मुलाकात
मुलाकात
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कुछ मुलाक़ातों की कोई परिधि नहीं होती,
बस उनमें लुत्फ़ -ए -कलाम हो,
फिर चाहे सुब्ह हो शब या शाम हो..!
श़फ़क़त- ए आबशार/
हसरत -ए दीद
हमें करीब ले आई,
किसी दायरे में नहीं बधी थी हमारी मुलाक़ात
बस हम ना मिलकर भी बेइंतहा मिलते थे
ऐसी थी अपनी मुलाक़ात..!!