" एकांत "
" एकांत "
झपकियाँ लेते - लेते कुछ सोचता हूँ !
कभी अर्ध - निंद्रा में भी गुनगुनाता हूँ !!
स्वप्न में भी कभी -कभी कहानियाँ बनती हैं !
पर आँख खुलने पर हर चीज धुंधली हो जाती है !!
लेखनी एकांत में ही निखरती है !
सोच भी वीरानों में बनती है !!
कोलाहल ,भीड़ और संगीतों के शोर में कविताएं नहीं बनती हैं !
विचार ,कविता और लेखनी सुने परिवेशों में ही निखरती और सँवरती है।
