एक ज़माने में उसकी जान रहा हूँ
एक ज़माने में उसकी जान रहा हूँ
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उनकी फितरत से अनजान रहा हूँ मैं
क्या बताऊँ कब और कैसे परेशान
रहा हूँ मैं
उन्हें तो हमसे अब मानो जैसे फ़र्क़ ही
नहीं पड़ता
उनके लिए मानो सर्दी ज़ुखाम रहा हूँ मैं
अब वो मुझसे ज़्यादा गैरों पर मरने लगा है
उसके लिए मानो कब्रिस्तान रहा हूँ मैं
वो देखकर मुझे राह बदलने लगे है साथी
एक ज़माने में उस कम्बख्त की जान
रहा हूँ मैं
मुझे देखकर अब उन्हें उनकी बेवफ़ाई
याद आती है अचानक उनकी हँसी
कहीं खो जाती है
क्या बताऊँ कभी उसके होठों की मुस्कान
रहा हूँ मैं
हाँ ये सच है एक ज़माने में उसकी जान
रहा हूँ मैं !