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Samreen Sheikh

Others

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Samreen Sheikh

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हाँ मै लिखती हूँ !

हाँ मै लिखती हूँ !

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हाँ मै लिखती हूँ

सब कहते थे बचपन से

बेकारी सी दिखती हूँ

हाँ कंधो पर बोझ तो मेरे भी है

पानी नहीं परेशानियों को रोज़ाना सींचती हूँ।


हाँ कही न कही बाबा ना सही

मैं माँ की तरह शायद दिखती हूँ

फिर भी ना जाने क्यों साहब

मै सम्मान के लिए बनी मूरत

बाज़ारो में तो जैसे हर रोज़ ही बिकती हूँ।


हाँ गम खरीद के दुनिया के थोड़े

मै खुशियों को भी खरीदती हूँ।


मै कोई झूट नहीं यकीन मानो साहब

जो जहाँ है वही लिखती हूँ

ये कलम मेरी औज़ार और ये कागज़ जैसे तलवार

मै जो लिखती हूँ साहब यही लिखती हूँ !



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