STORYMIRROR

Samreen Sheikh

Others

2  

Samreen Sheikh

Others

हाँ मै लिखती हूँ !

हाँ मै लिखती हूँ !

1 min
184

हाँ मै लिखती हूँ

सब कहते थे बचपन से

बेकारी सी दिखती हूँ

हाँ कंधो पर बोझ तो मेरे भी है

पानी नहीं परेशानियों को रोज़ाना सींचती हूँ।


हाँ कही न कही बाबा ना सही

मैं माँ की तरह शायद दिखती हूँ

फिर भी ना जाने क्यों साहब

मै सम्मान के लिए बनी मूरत

बाज़ारो में तो जैसे हर रोज़ ही बिकती हूँ।


हाँ गम खरीद के दुनिया के थोड़े

मै खुशियों को भी खरीदती हूँ।


मै कोई झूट नहीं यकीन मानो साहब

जो जहाँ है वही लिखती हूँ

ये कलम मेरी औज़ार और ये कागज़ जैसे तलवार

मै जो लिखती हूँ साहब यही लिखती हूँ !



Rate this content
Log in